ज्योतिष शास्त्र वास्तव में कर्तव्य शास्त्र और व्यवहार शास्त्र है
राज योग से भाव कुण्डली में कौन से योग बनते हैं की मनुष्ये सब सुख संपन होता है। एक घड़ी - महूर्त में अनेक जातकों ने जन्म लिया होता है उनमे से एक राजा बन गया दूसरा व्यापरी तीसरा मजदुर तो ऐसा क्यों होता है ? यह सवाल कई लोगों के मन में उठता है। एक समय जन्मे जुड़वाँ बच्चों का व्यवहार एक जैसा नहीं होता। ऐसा क्यों ?
जन्म कुण्डली का अध्ययन करते हुऐ व्यक्ति का जन्म किस घराने , देश में हुआ देखना जरुरी होता है। मगर कई बार राजघराने में जन्म लेने पर भी मनुष्य कंगाल हो जाता है और भिखारी के घर जन्म लेने वाला भी राजा जैसे जीवन व्यतीत करता है। इस के पीछे कुछ कारण होते है।
इस का कारण और निवारण ध्यान से पड़े; एक राजा ने अपने दरबार में यही सवाल किया की मेरे जन्म के समय कई लोगो ने जन्म लिए तो सब मेरे जैसे राजा क्यों न बने ? दरबार में चुपी छा गई ...... मगर एक विद्वान ने राजा से कहा यहाँ से कुछ दूर जंगल में एक साधु आप के प्रश्न का उत्तर दे सकते है। राजा बताए पते पर साधु से मिलते है मगर साधु राजा को आगे एक और महात्मा का पता बतातें हैं की वही आप के प्रश्न का जवाब देंगे। राजा की जिज्ञासा और बढ़ गई। जब राजा उस महात्मा तक पहुंचे तो महात्मा ने राजा को बताया की पिछले जन्म में हम तीन भाई थे में आप और वह साधु जिस ने आप को मेरे पास भेजा।पिछले जन्म में हम तीनो शिकार खेलने गए और जंगल में रास्ता भटक गए। तीन दिन तक भूखे प्यासे भटकते रहे। अचानक हमें आटे की पोटली मिली। उस आटे से तीन रोटी बनी। जैसे ही हम रोटी खाने बैठे तो अचानक वहाँ एक महात्मा पहुंचे और बोले की में पांच दिन से भूखा हूँ। मुझे खाने को कुछ दो - मुझ पर दया करो। मगर हम दोनों ने रोटी देने से मना कर दिया मगर तुम ने अपने हिसे से आधी रोटी महात्मा को दे दी। रोटी खाने के बाद जाने से पहले राजा बोले, " तुम्हारा भविष्य तुम्हारे कर्म और व्यवहार से फले।" महात्मा ने कहा की आप के कर्म और व्यवहार से तुम्हे राज मिला और हमें अपने कर्मो को सुधारने के लिए भक्ति। राजा को यह बात समझ आ गई की मूलत : ज्योतिष शास्त्र कर्तव्य और व्यवहार शास्त्र है।
No comments:
Post a Comment
Note: only a member of this blog may post a comment.