इन्दु: सवर्त्र बीजाभो लग्न तु कुसुम प्रभम।
फलेन सद्शोंशशच् भाव : सवादुसम: स्मत्:
अर्थात चन्द्रमा बीज, लग्न पुष्प, नवांश फल तथा भाव स्वाद के समान होता है। नवमांश और दशमांश से व्यापार और आजाविका का चयन किया जाता है।
अगर मंगल ग्रह लग्न , नवमांश और दशमांश तीनो ही कुंडलिओं में मेष या वृशिचक राशि में हो तो ऐसा जातक सेना, पुलिस या अर्धबल सुरक्षा क्षेत्र में आजीवका प्राप्त करता है। चन्द्रमा वृष में उच्च का कर्क में स्वग्रही और राशि में लग्न कुंडली में हो उसी राशि में नवमांश में हो तो वर्गोत्तम होता है ऐसा मनुष्य चिकित्सा (medical line) में उच्च कोटि का डॉक्टर, फार्मेसिस्ट या मेडिकल प्रबन्धन में होता है। ऐसा जातक दवायें बनाने वाली फैक्टरी में कार्य कर के लाभ प्राप्त करता है। जल और दूध से सम्बंदित काम करने से लाभ प्राप्त करता है।
चन्द्र लग्न, सूर्य लग्न और जन्म लग्न यानि सुदर्शन चक्र से दशमांश को देखने से पता करे की दशमांश का अदिपति बलवान है यां कमजोर, इस से आजाविका का चयन करने में आसानी होगी। सूर्य उच्च राशि में यां मूल त्रिकोण में हो तो राजनीति में या सरकारी उच्च पद प्राप्त करने में सहायता मिलती है।
दशम भाव में कोई भी वक्री ग्रह बैठा हो या उस पर दृस्टि हो तो फल मिलने में दिक्कत आती है। लग्न का स्वामी 12 वे भाव में या 12 वे भाव का स्वामी लग्न में बैठा हो और कर्मस्थान के स्वामी से सम्बन्ध बनता हो तो विदेश में कार्य करने से सफलता मिलती है।
नवमांश और दशमांश कुंडली में दशमेश सूर्य और बुध की युति मनुष्य को उच्च अधिकारी बना देती है। नवमांश में दशम भाव का स्वामी अगर उच्च राशि का हो और उस के ऊपर सौम्ये ग्रहों की शुभ दृस्टि हो तो व्यापर में लाभ मिलता है।
ऐसे बहुत से योगो का नवमांश और दशमांश कुंडली से विचार करने पर इस बात का पता लगाया जा सकता है की व्यापार में लाभ होगा या नौकरी से अच्छा फल प्राप्त होगा। सही विश्लेषण सही दिशा के लिए सम्पर्क करे 91 9417355500
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