ज्योतिष एक ईश्वरीय ज्ञान है। ज्योतिष में बच्चे के जन्म से लेकर अंतिम समय तक उपयोगिता होती है और जन्म के आधार पर बनी कुंडली से किसी भी समस्या का समाधान किया जा सकता है। आकाश में 9 ग्रह , 12 राशियां और 27 नक्षत्र अपनी- अपनी कक्षा में गतिशील हैं। इन्ही सब का व्यक्ति पर अलग अलग क्या प्रभाव, कब और कितना पड़ेगा इसी के अध्यन का नाम ज्योतिष है। मनुष्य ईश्वर की इस संसार को अदभुत देन है। मनुष्य के बारे में ज्ञान हासिल करना ईश्वर की किरपा द्वारा ही संभव है क्योकि ईश्वर की मर्जी के बिना ना तो मनुष्ये जन्म ले सकता है ना ही म्रत्यु होती है।
वेद के छ अंगो में से ज्योतिष प्रमुख अंग है जिसे नेत्र कहा जाता है। नेत्र ज्योति है जिस द्वारा सब वस्तुएं स्पस्ट देखी जा सकती है जैसे प्रकाश में प्रत्येक वस्तु देखी जा सकती है। वेद के नेत्ररूपी ज्योतिष से कुछ भी छिपा नहीं रह सकता और ज्योतिष के अनुसार कुण्डली मनुष्ये के पूरे जीवन, चरित्र, और घटनाक्रम का दर्पण है। यह सब भारतीय ज्योतिष में 9 ग्रह सूर्य, चन्द्रमा, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि, राहु और केतु की कुण्डली में स्थिति , किस अंश में है , किस राशि में है देखने के बाद ही इन ग्रहों को उपायों द्वारा ठीक किया जा सकता है।
ज्योतिष्शास्त्र का एक भाग है जन्मकुंडली जिस को अंग्रेजी में "होरोस्कोप" ( Horoscope) कहा जाता है जो की यूनानी भाषा के शब्द "होरोस्कोपका " का रूप है जिस से भाव - में देखता हूँ , जन्मते हुए ग्रहों को। ज्योतिष के दो भाग हैं गणित और फलित। गणित द्वारा कुण्डली का निर्माण होता है और फलित द्वारा फलादेश किया जाता है।
भारत ज्योतिष् की शुरुआत सुमेर की सभ्यता से मानी जाती है। सुमेरवासिओं से पहले पश्चिम जगत के लिए ज्योतिष का द्वार खोला और नक्षत्रों का ज्ञान हासिल करने की शुरुआत की थी। इस काल में सातसौ फुट ऊँची मीनारें बनाई जिसपर चढ़ कर पुरोहित आकाशमण्डल का अध्यन करते थे। कुण्डली के अध्यन के लिए संपर्क करें 919417355500
No comments:
Post a Comment
Note: only a member of this blog may post a comment.