हिन्दू शास्त्रों में विवाह के बाद पर पुरष यां पर स्त्री से शारीरक संबंध रखना सामाजिक निमयों के विरुद्ध माना जाता है।कुंडली के अध्यन में यह महत्वपूर्ण माना जाता है की जातक किस धर्म, देश, जाति से संबन्ध रखता है। मेरे अनुभव में आया है की जिस मनुष्य की कुंडली में निचे दिए योग हों वह हवस के वशीभूत हो कर दूसरे पुरष या औरत से नाजायज संबंध रखेंगे।
अगर कुंडली में शुक्र या गुरु ग्रह नीच राशिगत हो। सूर्य बुध और राहु इकठे किसी भी भाव में हों। https://m.facebook.com/daljitastro
बुध भाव नंबर 8 में स्त्री की कुंडली में हो। शुक्र-मंगल युति पहले, दसवे, सातवें भाव में पुरष की कुंडली में हों।
स्त्री की कुंडली में लग्न का स्वामी चौथे घर में हो और बारवें भाव के स्वामी के साथ उसका संबंध बने तो औरत परपुरष से संबंध बनाती है। 7 वे घर का संबंध 5 वे और 12 वे भाव से बने तब भी ऐसा योग बनता है।
लालकिताब की वर्षफल कुंडली में जब शुक्र 8 वे या 10 वे भाव में आये तो परपुरष यां परस्त्री से अनुचित संबंध बनते
देखे गए हैं। जितनी बार वर्षफल में सूर्य और शनि का टकराव आये तो उन वर्षों में जातक के संबंध बनते हैं।
पुरषों में नपुसंक योग यां स्त्री में सेक्स की इच्छा ना होना भी विवाहोतर संबंध बनने का कारण बनते है। जिस पुरष का शुक्र-राहु इकठे हो, शनि नंबर 7, चंद्र नंबर 1 में हो, सूर्य भाव नंबर 4 में और शुक्र 5 में हो तो नपुंसक योग बनता है। स्त्री की कुंडली में शुक्र 2 रे यां 6 वे भाव में अकेला बैठा हो और किसी और ग्रह की उसपर दृस्टि न हो तो औरत में ठंडापन पैदा होता है।
यह साधारण योग हैं इसके साथ अगर त्रिशांश, योगनी, मुंथा लग्न का विचार भी किया जाए तो सटीक फल देख़ने को मिलते है।
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