शुक्र और चन्द्र ग्रह का प्रभाव
ज्योतिष विद्या के अनुसार ग्रहो का प्रभाव हर किसी की मनोदशा को प्रभावित करता है। जन्म के समय ग्रहो की जैसी स्थिति होती है वैसा हीं मनुष्य का स्वभाव हो जाता है। जन्म कुण्डली में शुक्र को प्रेम का कारक ग्रह माना जाता है। यह भौतिक सुखो का कारक भी माना जाता है। शुक्र प्रधान जातक विलासितापूर्ण जीवनशैली का अनुगामी होता है, जबकि शुक्र पर्वत की अनुपस्थिति जातक को वैरागी बना देती है। शुक्र को वैवाहिक जीवन का कारक भी माना जाता है। जन्म कुण्डली में शुक्र की विभिन्न ग्रहो के साथ युति इसके फलो में विविधता लाती है।
शुक्र+मंगल : शुक्र और मंगल की युति से व्यभिचारी योग का निर्माण होता है। मंगल रक्त, क्रोध और उत्तेजना का कारक ग्रह होता है। यह जिस ग्रह के साथ युति करता है उस ग्रह से संबंधित गुणो को भड़का देता है। चूँकि शुक्र प्रेम और वासना का कारक माना जाता है अत: शुक्र की मंगल के साथ उपस्थिति शुक्र के गुणों को अनियंत्रित कर देती है। परिणामस्वरूप इस युति में जन्म लेने वाला जातक अपने जीवन मे एक से अधिक या अनेक संबंध बनाता है। वह एक जीवनसाथी से संतुष्ट नहीं रहता है और नये नये संबंध तलाशता रहता है। इस युति पर गुरु की पूर्ण दृष्टि या युति हो जाये तो सब कुछ ठीक रहता है, किन्तु गुरु की पूर्ण दृष्टि या युति न हो तो यह योग अशुभ फल देता है। चूँकि शुक्र प्रेम का कारक ग्रह है और मंगल प्रेम भंग करने वाला ग्रह माना जाता है अत: इन दोनो के एक साथ होने से प्रेम भंग हो जाता है। वैवाहिक जीवन पर इस युति का प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। पुन: मंगल और शुक्र नैसर्गिक सम और तात्कालिक शत्रु मिलकर पूर्ण शत्रु बन जाते है। इसमें भी यह देख लेना आवश्यक है कि यह युति किस ग्रह के घर में बन रही है। यदि यह युति गुरु के घर(धनु,मीन) में बन रही है तो अपेक्षाकृत कम प्रभाव पड़ता है। इसी तरह बुध के घर(मिथुन,कन्या) में भी इसका प्रभाव न्यून रहता है कारण कि बुध को नपुंसकता का ग्रह माना जाता है। किन्तु यदि यह युति स्वयं शुक्र के घर(वृष,तुला) या शनि के घर(मकर,कुम्भ) में बन रही हो तो जातक के चरित्र बिगड़ने की अधिक संभावना रहती है। परिणामस्वरूप ऐसा जातक अपने अवैध संबंधों के लिये अपनी प्रतिष्ठा का कोई ध्यान नहीं रखता और शर्म और लज्जा भी उसमें कम होती है, विशेषकर तब जब गुरु और सूर्य भी निर्बल हो। कुछ लोगों का यह भी मानना है कि यदि गुरु की युति या दृष्टि हो तो गुरु एक बड़ा ग्रह होने के कारण यह सब ढ़क लेता है जिससे जातक का चारित्रिक दोष ढ़क जाता है क्योंकि कई बार ऐसे संबंध प्राय: दूर के न होकर परिवार के नजदीकी रिश्तों के होते है। व्यभिचारी योग के हीं कुछ फल आंशिक रूप से तब भी मिलते है जब मंगल और शुक्र का दृष्टि संबंध हो अर्थात दोनो एक दूसरे से सातवे घर मे हो या मंगल और शुक्र का गृह परिवर्तन योग हो अर्थात मंगल शुक्र के घर(वृष,तुला) और शुक्र मंगल के घर(मेष,वृश्चिक) मे हो। यदि मंगल या शुक्र दोनो मे कोई वक्री हो तो इसका प्रभाव कम हो जाता है। शुक्र के अस्त होने से या सूर्य के साथ होने से भी इसका प्रभाव कम हो जाता है। इस योग का प्रभाव पहले, सातवें और ग्यारहवें घर में अधिकतम होता है। छठे घर में न्युनतम प्रभाव होता है। यदि आठवें या बारहवें घर में हो तो ऐसा जातक अपने अवैध संबंधों के कारण अपयश प्राप्त करता है। ग्यारहवें घर में हो तो अवैध संबंध व्यवसायिक और आर्थिक कारणो से या व्यवसायिक और आर्थिक हितों के लिये होते है। मंगल की शुक्र के साथ युति स्वयं मंगल के गुणों के लिये भी अनुकूल नहीं होती है। कारण कि मंगल युद्ध, साहस और वीरता का कारक ग्रह है और इसकी युति स्त्री कारक ग्रह शुक्र के साथ होने पर यह जातक को कायर, भीरु और डरपोक बना सकता है। निष्कर्ष्त: शुक्र और मंगल की युति जन्म कुण्डली मे प्रेम और वैवाहिक जीवन के लिये अशुभ होती है। प्रत्येक घर तीस अंश का होता है। एक हीं घर में मंगल और शुक्र जितने कम अंश तक पास-पास होते है उतना हीं अशुभ फल मिलता है।
शुक्र+राहु : कुण्डली में शुक्र और राहु की युति भी सामान्यत: अशुभ मानी जाती है। राहु का यह गुण है कि यह जिस ग्रह के साथ होता है उस ग्रह को या उस ग्रह से संबंधित गुणों को दूषित कर देता है। चूँकि राहु छल-कपट और धोखा देने वाला ग्रह है अत: यदि शुक्र की युति राहु के साथ हो जाये तो ऐसा जातक प्रेम मे धोखा देने वाला होता है तथा स्वयं भी प्रेम मे धोखा खाता है। ऐसे जातक का चरित्र भी संदेहास्पद होता है। वह विशाल भवनो, इमारतों और विलासितापूर्ण जीवनशैली की ओर बहुत आकर्षित होता है। वह अधिक से अधिक धन-दौलत संचित करने के लिये इच्छुक और प्रयासरत रहता है।
शुक्र+केतू : केतु का यह स्वभाव है कि यह जिस ग्रह के साथ होता है उस ग्रह की शक्ति को बहुत बढ़ा देता है कारण कि केतु धड़ भाग है जिसमें सोचने विचारने की शक्ति नहीं होती है। केतु जिस ग्रह के साथ युति करता है या जिस ग्रह की दृष्टि मे होता है या जिस ग्रह के घर मे होता है उसी के अनुसार फल देता है। शुक्र की युति केतु के साथ होने की स्थिति मे इन दोनो ग्रहों पर राहु की पूर्ण दृष्टि पड़ती है जिससे शुक्र और राहु की युति के फल भी आंशिक रूप से मिलते है। यदि इस युति पर गुरु की पूर्ण दृष्टि या युति हो जाये तो यह शुभ फल देता है।
शुक्र+शनि : यह युति शुभ मानी जाती है क्योंकि शुक्र और शनि परस्पर मित्र होते है। यदि शुक्र प्रबल हो अर्थात वृष/मिथुन/तुला/मकर/कुम्भ/मीन राशि का हो और शुभ भाव मे हो तो इसके शुभ फल मिलते है। साथ हीं शुक्र पर शनि का प्रभाव होने से कुछ चारित्रिक दोष हो सकता है। यह युति भौतिक सुखो को दिलाती है।
शुक्र+सूर्य : यदि शुक्र की युति पापग्रह सूर्य के साथ हो तो ये नैसर्गिक शत्रु और तात्कालिक शत्रु मिलकर पूर्ण शत्रु बन जाते है। सूर्य के साथ होने से शुक्र का तेज क्षीण हो जाता है जिससे शुक्र के प्रभाव और गुणों मे कमी आ जाती है।
शुक्र+चन्द्र : जन्म कुण्डली मे चन्द्र मन का कारक ग्रह माना जाता है। यह विशुद्ध प्रेम का कारक होता है। यदि चन्द्र की युति शुक्र के साथ हो जाये तो ऐसा जातक प्रेम करने वाला, प्रेम मे कोमल स्वभाव वाला, मधुर वाणी बोलने वाला, विनोदी, रसिक और कवि होता है। कुछ ऐसा हीं फल तब भी मिलता है जब शुक्र और चन्द्र का दृष्टि संबंध हो या इनका गृह परिवर्तन योग हो।
शुक्र+गुरु : यदि शुक्र की युति गुरु के साथ हो तो ऐसा जातक पवित्र प्रेम मे विश्वास रखता है। ये दोनो ग्रह शुभ और परस्पर शत्रु होते है और दो शत्रु ग्रहो की युति से अशुभ फल तथा दो शुभ ग्रहो की युति से शुभ फल मिलता है किन्तु यहाँ पर यह देख लेना आवश्यक है कि दोनो मे कौन कितना प्रबल है तथा युति किस भाव मे बन रही है क्योंकि दोनो मे जो प्रबल होता है उसी के अनुसार फल मिलता है। ऐसा जातक अपनी भावनाओ को नियंत्रित रखता है।
शुक्र+बुध : ये दोनो शुभ ग्रह परस्पर मित्र होते है अत: इनकी युति अत्यन्त शुभ होती है। यदि इन दोनो मे से कोई एक भी प्रबल हो अर्थात् वृष/मिथुन/सिंह/कन्या/तुला/मकर/कुम्भ/मीन राशि का हो तथा किसी शुभ भाव १/२/३/४/५/७/९/१०/११ में हो तो इनके शुभ फलो मे वृद्धि होती है। ऐसे मे यह युति जिस घर मे हो और इनसे सातवाँ घर जिस पर शुक्र और बुध की पूर्ण दृष्टि पड़ती है और जिन घरो के ये स्वामी होते है उनसे संबंधित शुभ फल मिलते है। चूँकि बुध ग्रह बुद्धि का कारक होता है अत: प्रेम के कारक ग्रह शुक्र के साथ इसकी युति हो जाने से जातक प्रेम के क्षेत्र मे बहुत सोच विचार कर कदम रखता है और अपने निजी हितों का ध्यान रखता है और प्रेम मे सफल होता है।
लग्न कुण्डली,चन्द्र कुण्डली और नवांश कुण्डली मे शुक्र की स्थिति जातक के चरित्र की सही जानकारी दे देती है। इनमें शुक्र का ठीक से विश्लेषण कर लेने पर किसी के भी चरित्र के बारे मे सही से पता लग जाता है किन्तु इस पर देश, काल और परिस्थिति का भी प्रभाव पड़ता है। परन्तु कुछ जन्म कुण्डलियाँ ऐसी भी होती है जिनमे शुक्र के निर्दोष होने पर भी चरित्र खराब होता है। ध्यान से देखने पर यह पता चलता है कि यदि सूर्य तुला राशि मे नीच का हो और गुरु+राहु का चण्डाल योग हो तो भी चरित्र खराब होता है। ऐसा इस कारण होता है कि सूर्य प्रतिष्ठा का कारक ग्रह होता है और यदि यह प्रेम और वासना के कारक शुक्र के घर तुला में नीच का हो जाये तो ऐसा जातक अपने अवैध संबंधों के कारण अपनी प्रतिष्ठा का ध्यान नहीं रखता और इसे गिरा देता है साथ हीं गुरु+राहु के चाण्डाल योग के कारण नीच और क्रूर कर्मो मे आसक्ति होती है। चाण्डाल योग दो प्रकार का होता है। पहला प्रकार वह जिसमें गुरु निर्बल और राहु प्रबल होता है। यह अत्यन्त अशुभ होता है। ऐसा जातक अपने गुरु को धोखा देता है और पापकर्मो मे आसक्ति होती है। दूसरा प्रकार वह जिसमें गुरु प्रबल और राहु निर्बल होता है। ऐसे मे गुरु की प्रबलता के कारण धर्म और अध्यात्म मे सफल होने लगे फिर भी राहु के साथ युति के कारण उसे पूरी सफलता नहीं मिल पाती है।
चन्द्र का प्रेम पर प्रभाव :
चन्द्र ग्रह भी प्रेम का कारक ग्रह होता है। शुक्र की तरह इसका प्रिय रंग भी श्वेत होता है। यह मन का कारक ग्रह होता है और प्रेम हमेशा मन से होता है। इसी कारण प्रेम के क्षेत्र में चन्द्रमा का महत्वपूर्ण स्थान होता है। यह सामान्यत: शुक्ल पक्ष की अष्टमी से कृष्ण पक्ष की सप्तमी तक प्रबल और कृष्ण पक्ष की अष्टमी से शुक्ल पक्ष की सप्तमी तक निर्बल होता है। इसमें भी पूर्णिमा का अति प्रबल और अमावस्या का अति निर्बल होता है। राशियो मे यह सामान्यत: मेष/वृष/कर्क/सिंह/धनु/मीन मे प्रबल और मिथुन/कन्या/तुला/वृश्चिक/मकर/कुम्भ मे निर्बल होता है। शुभ ग्रहो की राशि वृष/मिथुन/कर्क/कन्या/तुला/धनु/मीन में शुभ और पापग्रहो की राशि मेष/सिंह/वृश्चिक/मकर/कुम्भ में अशुभ फल देता है। यह शुभ ग्रहों के साथ युति करने पर शुभ फल तथा पापग्रहो के साथ युति करने पर अशुभ फल देता है।
चन्द्र का विभिन्न ग्रहो के साथ युति का परिणाम :
चन्द्र+शनि : चन्द्रमा की शनि के साथ युति अशुभ फल देती है। ऐसा जातक मानसिक रूप से असंतुलित होता है। मन मे नकारात्मक विचार हावी रहते है। विवाह मे बाधा आती है और विवाह देर से होता है। जीवनसाथी से मनमुटाव हो जाता है। यदि चन्द्र पर शनि की तीसरी, सातवी या दसवी पूर्ण दृष्टि पड़ती है तो भी ये सभी फल आंशिक रूप से मिलते है। इसमें भी शनि की सातवीं शत्रु दृष्टि अधिक अशुभ होती है। इस युति मे शनि और चन्द्र जितने पास-पास होते है उतना हीं अधिक अशुभ फल मिलता है।
चन्द्र+राहु : चन्द्रमा की युति राहु के साथ अत्यन्त हीं खराब मानी जाती है। यदि एक हीं घर मे चन्द्र और राहु नौ अंश तक पास हो तो चन्द्र ग्रहण योग का निर्माण होता है। चन्द्रमा जल तत्व का कारक होता है और राहु विष का कारक होता है अत: इनकी युति अशुभ फल देती है। इसी प्रकार यदि सूर्य की युति राहु के साथ हो और दोनो नौ अंश तक पास हो तो सूर्य ग्रहण योग का निर्माण होता है।
चन्द्र+केतू : केतू धड़ भाग होता है जिसमें सोचने विचारने की शक्ति नहीं होती है। यह जिस ग्रह के साथ युति करता है उसकी शक्ति को बहुत बढ़ा देता है। इस युति पर राहु की पूर्ण दृष्टि होती है।
चन्द्र+मंगल : इस युति के कारण मन मे क्रोध की वृद्धि होती है। वाणी और स्वभाव मे कठोरता आती है। ऐसा जातक अपने कार्य मे कठोर व्यवहार करता है साथ हीं साथ चन्द्रमा का जल तत्व अग्नि तत्व के मंगल को शांत भी करता है जिससे जातक अधिक कठोर नहीं बन पाता। शुभ स्थिति मे होने पर यह युति शुभ फल भी देती है।
चन्द्र+सूर्य : ये दोनो ग्रह आपस में घनिष्ठ मित्र होते है। चन्द्रमा जब सूर्य से बारह अंश आगे जाता है तो एक तिथि बदलती है। चन्द्रमा और सूर्य का एक हीं अंश पर मिलन अमावस्या की तिथि को होता है और तीस अंश के एक घर मे चन्द्रमा सूर्य से अधिकतम तीस अंश की दूरी तक हीं हो सकता है। अत: चन्द्रमा जब भी सूर्य के साथ होता है तो वह अमावस्या के आस-पास का हीं होता है अर्थात क्षीण स्थिति मे होता है।
चन्द्र+बुध : ये दोनो शुभ ग्रह परस्पर शत्रु होते है फिर भी इनकी युति या दृष्टि संबंध शुभ फलदायी होती है। चन्द्रमा मन और बुध बुद्धि का कारक होता है। इनकी युति से जातक मृदुभाषी, कोमल स्वभाव का, सहृदय, कुशल वक्त़ा और समझदार होता है। मन और बुद्धि मे संतुलन बना रहता है।
चन्द्र+शुक्र : इनकी युति या दृष्टि संबंध शुभ फलदायी होती है। मन के कारक ग्रह चन्द्रमा का संयोग जब प्रेम के कारक ग्रह शुक्र के साथ हो जाता है तो जातक का मन प्रेम के विचारो से भरा रहता है। यदि इन पर किसी पापग्रह विशेषकर शनि या राहु का प्रभाव न हो तो जातक प्रेम मे भावनापूर्ण, भावुक, मिलनसार, मृदुभाषी, कवि और विनोदी स्वभाव का होता है। मस्तिष्क रेखा यदि चन्द्र पर्वत पर चली गयी हो या मस्तिष्क रेखा मे से कोई शाखा चन्द्र पर्वत पर जाती हो या चन्द्र पर्वत पर वर्ग या अायत हो तो भी ये सभी गुण मिलते है पर आयु के जिस भाग से ऐसी मस्तिष्क रेखा आयु रेखा से दूर हटने लगती है उस आयु से निराशा हावी होने लगती है। यहाँ पर ध्यान रखने की बात यह है कि ऐसी मस्तिष्क रेखा मणिबन्ध को न छूती हो।
चन्द्र+गुरु : जन्म कुण्डली मे नवग्रहों के आपसी संयोग से जितनी भी युति बनती है उन सब मे गुरु+चन्द्र की युति सर्वाधिक शुभ होती है। यदि गुरु या चन्द्र प्रबल हो और यह युति किसी शुभ भाव मे बन रही हो तो यह जातक को जीवन मे काफी ऊँचा उठा देती है। ऐसा जातक दयालु, निष्ठावान, विनम्र, कर्मठ, विश्वासी, आस्थावान, परोपकारी, उदार और ऊँचे विचारो वाला होता है। वह विपरीत परिस्थितियों मे भी अपने आदर्शों और विचारो से कोई समझौता नहीं करता है।
केमद्रूम योग : यदि चन्द्रमा अकेले हो और उसके आगे-पीछे का घर भी खाली हो तो केमद्रूम योग का निर्माण होता है। घरो के खाली होने मे राहु-केतु का विचार नहीं किया जाता है अर्थात यदि चन्द्रमा के साथ या आगे-पीछे के घरो मे राहु या केतु हो तो भी केमद्रुम योग लगता है। इस योग मे जन्म लेने वाले जातक का मन अस्थिर रहता है। केमद्रुम योग का फल यह होता है कि जातक को आर्थिक प्रतिकूलता का सामना करना पड़ता है साथ हीं वैवाहिक जीवन पर अल्प प्रभाव पड़ता है। ऐसा चन्द्र यदि किसी शुभ ग्रह की राशि में हो तथा उस पर किसी शुभ ग्रह की दृष्टि हो तो केमद्रुम योग का प्रभाव न्युनतम होता है। यदि यह चन्द्र किसी पापग्रह की राशि मे हो तथा इस पर किसी पापग्रह की दृष्टि हो तो केमद्रुम योग का प्रभाव अधिकतम होता है। यदि इस चन्द्रमा की युति राहु या केतु के साथ हो जाये तो स्थिति और भी खराब हो जाती है।
सातवे घर का प्रभाव :
सातवाँ घर पुरुष की जन्म कुण्डली मे पत्नी का घर और स्त्री की जन्म कुण्डली मे पति का घर होता है। सातवे घर से जीवनसाथी के प्रति प्रेम का पता चलता है।
सातवें घर मे विभिन्न ग्रहों की स्थिति का फल :
सूर्य : यदि सूर्य सातवें घर मे तो यह लग्न को पूर्ण दृष्टि से देखता है। सातवें घर मे सूर्य हो तो क्रोधी स्वभाव का जीवनसाथी मिलता है।
चन्द्र : चन्द्र के सातवें घर मे होने से विभिन्न स्थितियों मे अलग-अलग फल मिलता है। यदि चन्द्रमा सातवें घर मे किसी पापग्रह कि राशि का हो तथा इस पर किसी पापग्रह की पूर्णदृष्टि या युति हो तो झगड़ालु स्वभाव का जीवनसाथी मिलता है किन्तु यदि यह किसी शुभग्रह की राशि का हो तथा इस पर किसी शुभग्रह की पूर्णदृष्टि या युति हो तो प्रेम करने वाला जीवनसाथी मिलता है। शुक्लपक्ष और कृष्णपक्ष तथा समसंख्यक और विषमसंख्यक राशियो के अनुसार चन्द्रमा की विभिन्न स्थितियों मे अलग-अलग फल होते है।
मंगल : सातवें घर मे मंगल का होना अशुभ होता है। ऐसे मे जन्म कुण्डली प्रबल मंगली हो जाती है। मंगली होने की अन्य स्थितियों मे तो मंगल केवल पूर्ण दृष्टि से सातवें घर को देखता है किन्तु सातवें घर मे होने पर इसका सीधा अशुभ प्रभाव वैवाहिक जीवन पर पड़ता है। परिणामस्वरूप ऐसा मंगल वैवाहिक जीवन के लिये अशुभ फलदायी होता है। इस मंगल पर यदि किसी अशुभ ग्रह की दृष्टि या युति हो जाये तो इसके अशुभ फलो मे और वृद्धि हो जाती है किन्तु यदि इस मंगल पर किसी शुभ ग्रह की दृष्टि या युति हो तो इसके अशुभ फलो मे कमी आती है।
बुध : सातवें घर मे बुध की स्थिति से बुद्धिमान और विनम्र जीवनसाथी मिलता है। बुध जन्म लग्न पर पूर्णदृष्टि डालता है जिससे ऐसा जातक आकर्षक व्यक्तित्व का होता है। वह बहुत सोच-विचारकर प्रेम करता है। जीवनसाथी से प्रेम मिलता है। किन्तु यदि इस बुध की युति किसी पापग्रह के साथ हो जाये तो यह अशुभ फल भी दे सकता है कारण कि बुध का यह स्वभाव है कि यह जिसके साथ बैठता है उसी के अनुसार फल देता है।
गुरु : जिसकी कुण्डली मे सातवे घर मे गुरु होता है वह अपने जीवनसाथी से बहुत प्रेम करता है। सातवें घर का गुरु सुशिक्षित, विनम्र, सुशील, बुद्धिमान, समर्पित और प्रेम करने वाला जीवनसाथी दिलाता है। किन्तु विवाह मे प्राय: विलंब होता है। यदि इस गुरु पर किसी शुभ ग्रह शुक्र, चन्द्र या बुध की दृष्टि या युति हो तो शुभ फल देता है। किन्तु यदि इस पर किसी शुभ ग्रह का प्रभाव न हो तो गुरु का यह स्वभाव है कि यह जिस घर मे होता है उस घर से संबंधित अशुभ फल देता है और जिन घरो पर पूर्ण दृष्टि डालता है उन घरो से संबंधित शुभ फल देता है अर्थात गुरु जिस घर मे हो उस घर की हानि होती है और जिन घरो पर इसकी दृष्टि पड़ती है उन घरो को लाभ होता है। गुरु अपने से पाँचवे, सातवे और नौवे घरो को पूर्ण दृष्टि से देखता है।
शुक्र : सातवे घर का शुक्र प्रेम मे चंचल बनाता है। परिणामस्वरूप इससे कई प्रेम होने की संभावना रहती है। यह जन्म लग्न पर सातवीं पूर्ण दृष्टि डालता है जिससे जातक मिलनसार, विनोदी, बहुत लोगो से मित्रता करने वाला, सुन्दर व्यक्तित्व का, प्रसन्न मन का और प्रेम करने वाला होता है। जीवनसाथी से बहुत अच्छा प्रेम रहता है। इसके एक से अधिक विवाह होने की संभावना भी रहती है।
शनि : यदि शनि सातवें घर मे हो तो यह वैवाहिक जीवन मे शक की स्थिति पैदा कर देता है जिससे आपस मे मनमुटाव हो सकता है। कई बार ऐसे लोगों का अपने से अधिक उम्र के लोगों से संपर्क होता है। जीवनसाथी भी अधिक उम्र का मिल सकता है। कुछ लोगों का यह मानना है कि शनि सातवें घर मे शुभ फल देता है। कुण्डली मे किसी भी घर मे शनि+राहु की युति हो तो शापित योग बनता है। शापित योग मे जन्म लेने का फल यह है कि देर से विवाह होता है साथ हीं आर्थिक आत्मनिर्भरता मे भी विलंब हो सकता है।
राहु : राहु जिस घर मे होता है उस घर को दूषित करता है। सातवें घर का राहु घर मे कलह का कारक होता है। जीवनसाथी से अनबन रहती है। ऐसे जातक को धोखा देने वाला जीवनसाथी मिल सकता है तथा जातक स्वयं भी अपने जीवनसाथी को धोखा दे सकता है। यदि इस राहु पर किसी शुभ ग्रह की दृष्टि हो तो इसके अशुभ फलो मे कमी आती है। जीवनसाथी अधिक उम्र का या अलग संस्कृति का भी हो सकता है।
केतु : सातवें घर का केतु प्रेम मे पागल बनाता है। यह वैवाहिक जीवन मे अनिश्चितता लाता है। चूँकि केतु धड़ भाग है और इसमें सोचने विचारने की शक्ति नहीं होती अत: ऐसा जातक बिना सोचे-विचारे प्रेम करने वाला होता है। केतु का यह स्वभाव है कि यह जिस घर मे होता है या जिस ग्रह के साथ युति करता है उस घर या उस ग्रह की शक्ति को बहुत बढ़ा देता है साथ हीं साथ उस घर से संबंधित फल को अनिश्चितता से भर देता है। केतु जिस घर मे हो उस घर के स्वामी की युति या पूर्णदृष्टि पा ले तो उस घर से संबंधित फल देने मे अति कर देता है। ऐसी स्थिति मे राहु जातक के पहले घर जन्म लग्न मे अर्थात तन स्थान पर तथा केतु सातवे घर अर्थात जीवनसाथी के स्थान पर होता है। चूँकि केतु राहु का आधा भाग है अत: वह अपने आधे भाग को पूरा करना चाहता है। अपने प्रेम को पूरा करने के लिये यह सभी सीमायें तोड़ सकता है। चूँकि इस पर राहु की पूर्णदृष्टि होती है और शनि, सूर्य तथा राहु अलगाववादी ग्रह माने जाते है अत: यह सामान्यत: अलगाववादी अशुभ फल देता है पर यदि इस पर किसी शुभ ग्रह की दृष्टि या युति हो तो यह शुभ फल भी देता है।
इस प्रकार लग्न कुण्डली, चन्द्र कुण्डली और नवांश कुण्डली पर शुक्र, चन्द्र और अन्य ग्रहो के प्रभाव के कारण कुछ जन्म कुण्डलियाँ प्रेम करने वाली, कुछ झगड़ा करने वाली और कुछ सामान्य होती है। इसी प्रकार कुछ जन्म कुण्डलियाँ अति प्रेम और कुछ अति झगड़ा करने वाली होती है। ग्रहो की स्थिति यह तय कर देती है और विभिन्न महादशा, अंतर्दशा और प्रत्यंतर्दशा मे यह बदलती रहती है। वस्तुत: जन्म कुण्डली मे शुक्र, चन्द्र और अन्य ग्रहो की स्थिति का सही से अध्ययन कर किसी के भी प्रेम और चरित्र के बारे मे सही से जाना जा सकता है।