कुंडली कैसे देखी जाए या कुंडली का अध्ययन कैसे किया जाए जिससे सही फलित हो सके? कुंडली अध्ययन करने की कई विधियाँ है। मैरे अनुभव में आया है की फलित करने से पहले कुंडली का कई कोणों से विश्लेशण करना चाहिए।लाल किताब से वर्षफल बनाकर, पराशरी से दशा, अन्तर्दशा, चर दशा, योगनी दशा,त्रिभागि दशा, नवमांश, दशमांश, सप्तमांश इत्यादि, और गोचर का गहन अध्ययन करना जरुरी है। गोचर कुंडली का फल बताने का बड़ा प्रभावी तरीका है। गोचर में चंद्र राशि और लग्न से प्रत्येक स्थान का क्या-क्या फल उत्पन होगा बताया जाता है। उदहारण के लिए जिस राशि में जन्म कुंडली में चन्द्रमा बैठा हो उस राशि पर जब सूर्य आएगा तो सूर्य पहले स्थान में माना जायेगा। सूर्य जब चन्द्र राशि पर आएगा तो प्रथम स्थान पर होगा। सुर्य प्रत्येक भाव में क्या फल देगा यह समझते है (१) यात्रा करवाता है, क्रोध ज्यादा आता है। जातक परिश्रम ज्यादा करेगा। लाभ काम होगा। (२) लोभ,धोखा, धन का नाश। (३) शत्रुओं का नाश,धन प्राप्ति, स्थान प्राप्ति, कार्यसिद्धि। (४) रोग बढ़ते है और सुख में कमी होगी। (५) मोह और रोग के कारण मन में संताप। (६ ) रोगों , दोषों का नाश , शत्रुओं का विनाश , चित मे खुशी। (७ ) मन में कलेश , आदर में कमी,बवासीर रोगी। (८ ) रोग भय उत्पन हो , सरकार से दंड मिलना। (९ ) दीनता, लोगों से बिना बात बहस करे। (१० ) कार्य सिद्धि , जिस भी कार्य को करे उसमे लाभ। (११ ) शारीरक स्वास्थ्ये प्राप्ति, मान सन्मान पैसे की प्राप्ति। (१२ ) कलेश, धन की बर्बादी , रोग। गोचर में जब सूर्य , चन्द्रमा से तीसरे , छटे या दसवे, ग्यारंवे में आता हे तो शुभ होता है। इस में वेध स्थान नोवे, बाहरवें, चौथे और पांचवे में कोई ग्रह ने हो तो यह फल प्राप्त होते है। कुंडली में सारे ग्रहों का गोचर फल जानने के बाद ही फल कथन करना चाहिए।
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