चारों वेदों के सागर में ज्ञान का इतना भंडार भरा है की इस में डुबकी लगा कर मनुष्ये हीरे जवाहरात का अपार भंडार प्राप्त कर सकता है। हीरे जवहरात से भाव सुख,समृद्धि और ऐश्वर्ये से है ना की दौलत सै क्योकि दौलत से सवास्थय को प्राप्त नहीं किया जा सकता बल्कि अच्छी सेहत से ही दौलत प्राप्त की जा सकती है। वेदों में सूक्तों का जप करके समस्त रोग, दोष, क्लेश,दुःख, संतापों का निवारण किया जा सकता है। कई तरहें की महाविद्या उपनिषद में हैं और महाविद्या उपनिषद है। माता वैष्णोदेवी जी का मंदिर जम्मू के पास है। इस मंदिर में जाने का सौभाग्ये मुझे भी प्राप्त हुआ। इस मंदिर पर माता दूर्गा निर्वाणमंत्र लिखा हुआ है (ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डयै विच्चे) वस्तुते: यह दुर्गतिनाशिनी भगवती दुर्गा देवी की साधना की महाविद्या है। इस मन्त्र की साधना साधारण व्यक्ति के लिए करना संभव नही, इस का पाठ पवित्र मन से सूर्यौदय से पूर्व करने मात्र से लाभ प्राप्त किया जा सकता है।अथर्ववेद दुःस्वप्नो को रोग का कारण मानता है।
दुःस्वपन रोगों का कारण बनते है
अथर्ववेद सवप्नों, दुःस्वप्नो से मनुष्य के सुबह अशुभ विचारों को मानता है। अथर्ववेद काण्ड १६ सूक्त ५ की पहली ऋचा में दुःस्वप्नो के कई कारण बताये है जैसे ग्राही यानि दीर्घरोग , निऋक्ति यानि दरिद्रता , अभूति यानि निराश्रित ,निर्भूति यानि निर्धनता ,पराभूति यानि पराजय ,देवजामि मतलब इन्द्रिय दौर्बल्ये। दुःस्वप्न आने वाले समय में होने वाले रोगों, संकटों के पूर्व परिचायक माने जाते है। मानसिक , शारीरक आधि -व्याधि को दूर करने के लिए अथर्ववेदमें इस का निवारण बताया गया है।
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