ऋषि जैमिनी और पराशर ने ज्योतिष अध्ययन में दो अलग अलग विधिओं को प्रयोग में लाया है। उत्तर भारत में ऋषि पराशर द्वारा बनाये नियम ज्यादाःतर कुंडली विवेचन में प्रयोग किये जाते है। ऋषि पराशर पद्धति के सहायक के रूप में जैमिनी पद्धति का उपयोग करने से सटीक ज्योतिषफल को कहा जाना संभव है। अगर जैमिनी विधि से कुंडली का गहन अध्ययन किया जाये तो जातक का आयु निर्धारण, शारीरक स्वरूप, चरित्र और मस्तिष्क, धन सम्पति, स्वास्थ्य और रोग, शिक्षा, माता पिता, भाई बहनों, विवाह, व्यवसाय बारे जाना जा सकता है। जैमिनी सूत्रम में राज, अरिष्ट, और मिश्रित योगों का वर्णन आया है। राज योग से भाव राजाओं जैसे सुखों को जीवन में भोगना।
जैमिनी पद्धति में राज योग तब बनता हे जब जन्म लग्न, होरा लग्न और घटिका लग्न एक ही ग्रह से देखे जाते हों तो प्रबल राज योग बनता है। अगर राशि, नवमांश,द्रेष्कोण तथा लग्न किसी गृह से देखे जाते हों। मंगल, शुक्र व केतु आपस में एक दूसरे को देखते हों या एक दूसरे से तीसरे बैठे हों इससे जातक प्रसिद्धि प्राप्त करता है। जब आत्मकारक ग्रह से दूसरा, चौथा, पंचम स्थान समान बल का हो या शुभग्रह युक्त हो। आत्म कारक से तीसरा और छठा भाव समान बल का हो और क्रूर गृह से देखा जाता हो या युक्त हो। अगर लग्नेश से या सप्तमेश से दूसरा, चौथा, पांचवा भाव शुभ ग्रह से युक्त हो। कारकांश में शुक्र की स्थिति बहुत सुभकारक हो तो भी राज योग कारक होता है। राजनीतिक शक्ति के लिए कुंडली में लग्न, सातवे, नौवे भाव की बलवान स्थिति होना। लग्न वे चौथे भाव में समान ग्रह होना। लग्न व सप्तम में समान ग्रह राजयोग बनाते है पर यह जीवन के पिछले हिसे में फलदयाक होते है। चंद्र व शुक्र इकठे या आत्मकारक को देखे या उससे दसवे भाव में हों। चंद्र सातवे भाव में शुभ गृह द्वारा देखा जाता हो तो राजा का कर्मचारी कहा गया है त्रिकोण व केन्द्र में अगर सुबह गृह न हों तो नौकर कहा गया है।
मैंने अनुभव किया है की जब प्राचीन समय में ज्योतिष ग्रंथ लिखे गए तब और अब की परस्थितिओं मे काफी अंतर आ गया है। जैसे पहले कहा जाता था उत्तम खेती, मद्धम व्यापार,निखिद्द नौकरी, भिख गवार। मगर आज के युग में नौकरी, खेती से उत्तम मानी जाती है। कलयुग में कलपुर्जों की महत्तता बहुत बढ़ गई है। आज समय की आवश्यकता है की भारतीए ज्योतिष में शोध (Research)की जाये।
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