जन्म कुंडली के सप्तम भाव से विवाह के बारे जाना जाता है। शुक्र और बृहस्पति विवाहिक जीवन के कारक ग्रह माने जाते है। यदि राहु,शनि,केतु,सूर्य की कुदृस्टि सातवे भाव पर हो तो भी विवाहिक जीवन प्रभावित होता है।
लग्न कुंडली के पहले, चौथे, सातवे, अष्ठम और बाहरवें भाव में मंगल भी मांगलिक दोष बनाता है जिस कारन से भी विवाह में विलम्ब हो सकता है। विद्वानों का मत है की मंगली दोष होने पर 27 या 28 वर्ष के बाद ही विवाह करना चाहिए।
सातवे भाव का स्वामी ग्रह अगर निर्बल,नीच राशिगत हो, अस्त या पापी ग्रहो द्वारा देखा जाता हो तो विवाह में विलम्ब होता है।
नवमांश में लग्न और सप्तम की सिथिति भी विवाह में देरी का कारण होती है।
जल्दी विवाह के लिए लड़के को केला का पौधा और लड़की को केली का पौधा अपने निवास स्थान से सप्तमेश की दिशा में किसी भी धर्मस्थान में वीरवार को लगा देना चाहिए। मगर सम्पूर्ण कुण्डली का विश्लेषण करने पर ही पूर्णफलदायक उपाय करने संभव होंगे।
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