मंगल ग्रह के साथ कुण्डली में अशुभ राहु या केतु इकठे हों या अशुभ दृस्टि डालते हो तो अंगारक योग बनता है। अंगारक योग अशुभ क्यों माना जाता है ? वास्तविकता में जातक को अशुभ प्रभाव तभी मिलते है जब कुण्डली में अंगारक योग बनाने वाले मंगल, तथा राहु या केतु दोनों ही अशुभ हों और अगर इन ग्रहोँ में अशुभता न हो तो अशुभ प्रभाव नहीं होते।
इस योग के अशुभ प्रभाव पड़ने से मनुष्य आक्रमक, शत्रु, षड़यंत्र कारी, बुरे विचार, छल कपट करने वाला और हिंसक हो जाता है । अगर अशुभता बहुत ज्यादा हो तो व्यक्ति पेशेवर हत्यारा और अपराधी बन जाता है। अगर शभ मंगल का संबंध शुभ राहु या केतु से बन रहा हो तो जातक उच्च पुलिस, सेना अधिकारी या उच्च कोटि का खिलाडी बन जाता है।
पर्त्येक भाव में बनने वाले अंगारक योग का फल उस भाव से संबंधित फल देता है जैसे छटे भाव में अगर अशुभ का मंगल हो हुए साथ में अशुभ राहु हो तो छटे भाव से संबंधित फल यानि रोग और शत्रुओं को बढ़ायेगा। कुण्डली में बलवान का मगल हो यानि मेष, वृश्चिक या मकर में हो जब की वृश्चिक में बैठा राहु बलहीन हो जायेगा और बलहीन राहु का अशुभ प्रभाव मंगल पर बहुत कम पड़ेगा।
- प्रथम भाव में अंगारक योग होने पर शरीर पर चोट, अस्थिर मानस्किता और क्रूरता देता है।
- दूसरे भाव में धन हानि यान उत्तार चड़ाव बहुत होते है।
- तृतीय में भाईओ से कटु संबंध यां भाईओं को मृत्ये तुल्ये कष्ट होते है और जातक दोखेबाज़ी करता है।
- चतुर्थ में माता को कष्ट और भूमि सम्बन्धी विवाद पैदा होते है।
- पंचम में संतानहीनता या सन्तान से लाभ न मिलना।
- छटे में रोग और शत्रुता बढ़ाता है।
- सप्तम में विवाहिक सुखों में कमी करता है।नाजायज संबंध बनते है और उन से हानि होती है।
- अष्ठम में दुर्घटना होने के ज्यादा योग बनते है। मगर पैतृक सम्पति मिलती है।
- नवम में अंगारक योग बनने से भाग्य हीन, वहमी, रूढ़िवादी बनता है।
- दशम में अंगारक योग होने से मनुष्य पर अच्छे प्रभाव पड़ते देखे गए है।
- एकादश में होने से व्यक्ति धोखेबाज़ चोर व कपटी बनता है मगर प्रॉपर्टी का लाभ मिलता है।
- व्यय भाव में होने से व्यक्ति बलात्कारी और अपराधी बनता है मगर इम्पोर्ट एक्सपोर्ट और रिश्वत खोरी से लाभ होता है।
No comments:
Post a Comment
Note: only a member of this blog may post a comment.