बृहत्पाराशरहोराशास्त्र ज्योतिषशास्त्र का विशेष उपयोगी ग्रन्थ है। ज्योतिष का ज्ञान इस को पड़े बिना अधूरा ही रहेगा।
इसके पूर्वार्ध में 39 तथा उत्तरार्ध में 19 अध्याय हैं ग्रहरूपी जनार्दन ही जीवों के कर्मफल देने वाले हैं। सूर्य का रामावतार,चन्द्रमा का कृष्णावतार, मंगल नर्सिंहावतार, बुध का बौद्धावतार,बृहस्पति का वामन,शुक्र का परसुराम,शनि का कूर्म ,राहु का वराहावतार, केतु मत्स्यावतार हुआ। विष्णु ही काल रूप जनार्दन हैं। कालरूप पुरष के अंग ही 12 राशियां है। सूर्य को आत्मा, चंद्र को मन, मंगल को सत्त्व,बुध को वाणी, गुरु को ज्ञान का सुख, शुक्र को बल, शनि को दुःख का प्रितिनिधि बताया गया है। आचार्य पराशर ने 16 प्रकार से कुंडली के निर्माण में ग्रह,होरा,द्रेष्कोण,चतुथार्श,सप्तमांश, नवांश, दशमांश, त्रिशांश,,,,, इत्यादि। आरूढ़ लग्न उपपद लग्न मारकेश का विचार इस शास्त्र में हुआ है। गजकेसरी, पारिजात, सुनफा, अनफा ,दुरुधरा, केमन्द्रम, धनप्राप्ति और राजयोगों का वर्णन है। ग्रहों की जाग्रत,स्वप्न और सुषुप्तावस्था होती है।
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