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Saturday, 28 March 2020
Friday, 27 March 2020
कोरोना (CORONA VIRUS) कहर से बचाव कब ?
कोरोना CORONA VIRUS) कहर और ज्योतिष विश्लेषण करने से पहले यह जानना जरुरी है की किस किस ग्रह के कारण दुनिया पर इस का कहर हुआ। रहस्यमय बीमारयों जो virus or bacteria के कारण फैलती हैं,के बारे में राहु और केतु को मूल कारण मन जाता है। पुरातन कथा के अनुसार राहु वेश बदल कर अमृतपान करने देवताओं के साथ बैठ गया था। Jupiter गुरु को जीवन का कारक भी माना जाता है। जब राहु और केतु का प्रभाव बृहस्पति पर बुरा पड़ेगा तब ही रहस्य मय बीमारयां फैलती हैं। केतु बड़ा ही रहस्यमय(Mysterious) छाया ग्रह है और :
मार्च 2019 को बृहस्पति और केतु की युति गोचर में बनी और इसी से यह संक्रामक रोग फैला।
दिसंबर 2019 को सूर्य ग्रहण और कुछ ग्रह वक्री होने से यह संक्रामक रोग तेज़ी से फैला। ( ग्रहण के बाद आमतौर पर कुदरती आपदा भूकंप , मार काट , महामारी आदि देखने में आती है )
मार्च 2020 को केतु से अलग हो कर बृहस्पति नीच राशि मकर में चला जायेगा जिस से कोरोना कहर से बचाव होना शुरू हो जायेगा।
अप्रैल 2020को सूर्य मेष राशि में जाने से शोध कर्ताओं को इस बीमारी से बचाव की दवाई की खोज में मदद मिलेगी।
राहु आद्रा नक्षत्र में होने से ज्यादा शक्तिशाली होगा मगर इस नक्षत्र के मध्य से (अप्रैल 15,2020) से राहु का असर और ताकत कम होनी शुरू हो जायेगी जिस से इस रोग का प्रकोप ख़त्म होना शुरू होगा।
बचाव के लिए सूर्य को बल दे जिस से राहु और केट का प्रकोप घटेगा। गायत्री मन्त्र ,सूर्य जप और अपने धर्म के देवी देवता के जाप से राहत मिलेगी। इसके साथ सरकार द्वारा दी गईं हिदायतों का सख्ती से पालन करें। किसी भी वास्तु को छूने के बाद साबुन से हाथ धोए। दूसरे लोगों से फासला बनाये रखें। मास्क पहने।
Wednesday, 25 March 2020
अथर्वेदीए प्रयोग
व्याधियों को दूर करने के लिए जप, जलावसेचन , उपस्थान, हवन , रक्षाकरण्ड , मणिबंधन विधान अथर्ववेद में बताये गए हैं जिसे ब्रह्माग्रह ,प्रेतग्रह , पिशाच ग्रह आदि से पैदा भय उन्माद आदि,-व्याधि के निवारण के लिए सदाबहार के पुष्प शं नो देवी पृश्निपर्णी अंक २ /२५ तथा ४/३६ से अभिमंत्रित कर ताम्बे के तावीज़ में पहनाने के बाद आ पश्यति ४/२० से जलवसचेन करने से बाधा निवारण होता है
Tuesday, 24 March 2020
बृहत्पाराशरहोराशास्त्र ज्योतिषशास्त्र का विशेष उपयोगी ग्रन्थ है। ज्योतिष का ज्ञान इस को पड़े बिना अधूरा ही रहेगा।
इसके पूर्वार्ध में 39 तथा उत्तरार्ध में 19 अध्याय हैं ग्रहरूपी जनार्दन ही जीवों के कर्मफल देने वाले हैं। सूर्य का रामावतार,चन्द्रमा का कृष्णावतार, मंगल नर्सिंहावतार, बुध का बौद्धावतार,बृहस्पति का वामन,शुक्र का परसुराम,शनि का कूर्म ,राहु का वराहावतार, केतु मत्स्यावतार हुआ। विष्णु ही काल रूप जनार्दन हैं। कालरूप पुरष के अंग ही 12 राशियां है। सूर्य को आत्मा, चंद्र को मन, मंगल को सत्त्व,बुध को वाणी, गुरु को ज्ञान का सुख, शुक्र को बल, शनि को दुःख का प्रितिनिधि बताया गया है। आचार्य पराशर ने 16 प्रकार से कुंडली के निर्माण में ग्रह,होरा,द्रेष्कोण,चतुथार्श,सप्तमांश, नवांश, दशमांश, त्रिशांश,,,,, इत्यादि। आरूढ़ लग्न उपपद लग्न मारकेश का विचार इस शास्त्र में हुआ है। गजकेसरी, पारिजात, सुनफा, अनफा ,दुरुधरा, केमन्द्रम, धनप्राप्ति और राजयोगों का वर्णन है। ग्रहों की जाग्रत,स्वप्न और सुषुप्तावस्था होती है।
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