यजुर्वेद ( ३४। ५१ ) में लिखा है जो सुवर्ण धारण करते हैं, राक्षस और पिशाच उन पर आक्रमण नहीं कर सकते। यह देवताओं का प्रथम तेज है। जो इस तेज को धारण करता है , वह देवलोक और मनुष्य लोक - सकल स्थानों में दीर्घायु होता है। इन सब तामसिक कर्मों को दूर करने के लिए जो सात्विक कार्य होना चाहिए , इस को करने वाला चोर हो, ठग हो, मतलबी हो या धूर्त हो या लुटेरा हो इस का दोष शास्त्र पर नहीं आ सकता। समाज में पाखंडी लोगों का बहिष्कार करें तभी शास्त्रों का सही ज्ञान लोगों तक पहुंचेगा।
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