कुण्डली के सप्तम भाव से प्राय विवाहिक जीवन बारे ज्ञान मिलता है। मेने अनुभव किया है की सप्तम भाव में ग्रहों का विवाहिक जीवन पर काफी प्रभाव होता है। इस के इलावा सप्तमेश की स्थिति को भी ध्यान में रखना अनिवार्य है। अगर सप्तमेश नीच राशि में त्रिक भावों में हो या अस्त हो और पापी ग्रहों से देखा जाता हो तो भी ग्रहस्थ में ख़राबी होती है, ऐसा अनुभव में देखा गया है। यहाँ हम सिर्फ सप्तम भाव में बैठे ग्रह के बारे में ही विचार करेंगे।
☀सूर्य अगर सप्तम भाव में बैठा हो तो व्यक्ति की पत्नी के स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है। औरतों द्वारा मनुष्य का तिरस्कार होता है। मनुष्य का चरित्र विवादस्पद रहेगा। सूर्य की गर्मी की तपश से यह मनुष्य की वासना को अनियंत्रित करता है।
☽ चन्द्रमा अगर सप्तम भाव में हो तो पत्नी का रंग पति से गोरा होता है। पत्नी के वश में जीवन बीतता है। नरम सवभाव से कोई भी वश में कर सकता है।
🔴 मंगल सप्तम में होने से पत्मि को कष्ट होता है नीच औरतों के संपर्क में रहता है। औरत के हो तो उस का शरीर गठा हुआ होगा। स्तन उन्नत होंगे। जातक के शरीर में रोग ज्यादा होंगे और शत्रु भी ज्यादा होंगे।
☿ बुध सप्तम में होने से जातक संभोग में शिथिल होता है उस की पत्नी मृगनैणी और सूंदर होगी। बुध अगर अकेला हो तो जातक सुन्दर व् बुद्धिमान होगा।विवाहिक जीवन सुखमय होगा।
♃ गुरु सप्तम में होने से जातक का सवभाव नर्म होता है , अगर गुरु सवराशि हो तो विवाहिक जीवन सुखमय नहीं होता , कई बार तलाक की नौबत भी आ जाती है।
शुक्र सप्तम में होने से दो शादी होने का योग बनता है या रिश्ता हो कर टूट जाता है। दाम्पत्य जीवन में मुश्किलें पैदा होती है। विवाह लोगो में चर्चा का विषय बनता है।
♄ शनि सप्तम में होने से विवाह में कई बार देरी करवाता है। जातक का शरीर दोषयुक्त रहता है। पत्नी से मनमुटाव रहता है। विवाहिक सन्तुस्टि नहीं मिलती।
🐍राहु सप्तम में विवाहिक शनि नहीं होने देता , व्यक्ति परस्त्रीगामी होता है। अगर ज्योतिषी उपाय न किये जाएं तो जीवन सुखमय नहीं रहता। जातक क्रोधी होता है।
केतु सप्तम में होने से जातक को स्त्री सुख कम मिलता है , जातक व्यभिचारी होता है।
कुण्डली का पूर्ण विश्लेषण करने के बाद ही विवाहिक भविष्यवाणी की जा सकती है।
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